Saturday, February 19, 2022

चलना हमारा काम है / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।

इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।

फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।

Wednesday, June 12, 2013

आया प्यारा मौसम छप छ्प छप छप कीचड का

के देखो कैसे भूरी मिटटी काली काली बन जाती है .
कैसे मेंडक ऊपर आकर, टर टर का राग सुनाते हैं .
फिर रातों को आ आ के जुगनू गीत सुनाते हैं .
मनो कहते हों प्रेम गीत, कोई मधुर युगल, कोई मधुर प्रीत,
थकते हैं कहाँ बस गाते हैं , हम सुनते हैं, वो गाते हैं .

सरकार की सारी सड़कों की, सब नालों की, सब पुलों की,
सब नई पुरानी रेलों की, हवाईजहाज और खेलों की

सारी पोलें खुल जाती हैं.
अख़बारों में फिर पांडे जी वही खबरें लिख जाते हैं.

ऐसा लगता इसबार मुझे भजिये न कहीं मिल पायेंगे.
अब दिल्ली में तो बस हम मोमोस से काम चलाएंगे

चलो सावन कोई बात नहीं , तुम तो पुराने साथी हो
हम फिर मिलेंगे भोपाल में, फिर तुम संग मौज मनाएंगे .

Tuesday, April 28, 2009

मेरी जिंदगी

काश के मुझे तुमसे प्रेम ना हुआ होता,
तुम जानती हो मेरे कितने काम बढ़ गए हैं,
मुझे रोज़ तुम्हारे बारे में सोचना होता है , तुमसे बात करने होती है।
तुम हो, चाहे ना हो,
मै तुम्हे कब से देखना चाहता हूँ,
बल्कि रोज़ देखना चाहता हूँ,
पर एक तुम हो
तुम अपने घर पर एक जायज़ बहाना नहीं कर सकतीं,
मुझसे बात नहीं कर सकतीं.
तुम्हारे साथ जिंदगी,
खूबसूरत है,
खूबसूरत होगी,
मैंने ऐसा ही सोचा है,
रोज़ सोचता हूँ।

Tuesday, April 14, 2009

चाँद रात

तो कल रात आप फिर नही सोए ,

वही पुराने तारों को देखते रात गुजारी ,

आया वो तेरा चाँद

नही ना !

नही आएगा

वो भी कहीं तेरा इंतज़ार कर रहा था ,

कहीं किसी बद्री मैं छुपा

किसी झाडी मैं फंसा ,

दर्द तो उसे भी हुआ होगा

झाडी मैं काँटों का ,

डर तो उसे भी लगा होगा

बदल मैं अंधेरे का

क्या सोचता है

की वो दिन मैं सोया होगा ,

तेरे बिन वो अंगडाइयां ले रहा होगा ,

बदल रहा होगा वो करवटें बार बार ,

इस धुप के बाद भी कोशिश करता है तुझे देखने की

तू भी बड़ा जालिम है ,

रात भर तो जागेगे

और फिर ख़ुद ही गायब हो जायेगा

देख उसे

कितनी तपिश झेल रहा है

रात दिन तेरी ही राह देख रहा है

उसे देखकर लगता ही नही की चैन मिला है

अब तो वोह तेरी ही तरह दिखने लगा है ,

तेरे ही रंग मैं रंगने लगा है

तेरी हर याद है उसके ज़हन मैं

वो याद करता है ,

तेरा वो गिर गिर के संभालना ,

वोह संभल संभल के गिरना

वोह रूठ रूठ के बिगड़ना ,

वोह बिगड़ बिगड़ के रूठना

वो एक कहने पे सारी बातें कहना ,

वो तेरा दर्द देके उसको रुलाना ,

वो रूठना मानना ,

वो बातें बनाना ,

वो अपना बता के दूजों से मिलाना

वो तेरा बातें बदलना

वो बातें घुमाना

एक तू है जिसे कुछ याद ही नही सिवा उसकी याद के ,

तुझे याद है तुने किया था कुछ वादा ,

क्या था वो तेरा इरादा ,

कहा था बीत पायेगा ये खुशनुमा मौसम ,

अब कहता है फिर आएगा वो मौसम ,

तेरी इसी वादा खिलाफी से वो परेशान है ,

फिर भी वो कहता है तू मेरी जान है

मैंने उससे भी बात की है

वो कहता है 'उसके सिवा कुछ समझ नही पता ,

वो तो दिल मैं रहने वालों को नही समझ पता '

कुछ और रातें बाकी हैं अब वो ना सोएगा ,

पर ये मत समझना की वो कभी रोएगा ,

दिल मैं जगह तो तेरे बना ही ली है

मुकाम जो पाना था वो पा ही लिया है , अब क्या फर्क पड़ता है साथ होने का

नशा और खुमारी तो छा ही गई है , गम नही जाम हाथ होने का

जाने क्यूँ लगता है की तुझे गम ही नही ,

पर तेरे सेहरा मैं तो आंसू मुझे दीखते कम नही ,

अब तो मैं भी आँख मिचौली से अंग गया हूँ ,

तेरी इन बातों पे तेरे संग गया हूँ

"कर अगर कुछ तो मिटने की आस रख ,

कहाँ मिली है किसी नदी को समंदर से बेवफाई "

Sunday, April 12, 2009

ना जाने कहाँ खो गई



आज हम इतने आगे बाद गए हैं की पीछे छुते अपने ही पैरों के निशानों को पहचाना शायद अमर लिए मुश्किल होता जा रहा है । हरिवंश राय बच्चन मधुशाला मैं एक जगह कहते हैं , 'बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनती यौवन का ', हम तो भूल ही गए है की बुलबुल की आवाज़ मैं मिठास भी होती है , पानी मैं गहराई तक और ११.१ % महंगाई तक तो हम पहुँच गए है पर एक भाई का अपनी भौजाई तक से रिश्ता दूर खोता जा रहा है । गाडरवारा से आए एक कवि श्री भारत भूषण जी की एक रचना यहाँ प्रस्तुत है परिचय मैं पहले ही करा चुका हूँ ।
ना जाने कहाँ गया ,
निश्छलता का भावः ,
अपने पन की गहराई ,
हर्षित होती आंखें
देख घटाएं सावन की
शिखर छुते पेड़
देख अभिमान से भर
भर उठते ह्रदय
की अन्तः खुशी
निर्जीवता को भी
अपनत्व का मधु
घोलकर
समाहित कर देती थी
संजीवता के
आभास मैं
अनजान के लिए
आंखों से आंसुओ
का दान
दर्द को दर्द की पहचान
ना जाने कहाँ खो गई ???
फिर मिलेंगे !

Saturday, April 11, 2009

मेरा ये दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है

ये दौर जिंदगी का ना जाने क्यूँ बदलता है ,
मेरा दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है ।

उस ज़माने मैं हमने लाख तारे तोडे हैं ,
अब इस ज़माने ने हमे तोड़ रखा है ।

वो क्या आदयें थीं अपनी इतराने की ,
अब अपनी आदाओं को हमने ही भुला रखा है ।

पूरी करी थीं ना जाने कितनो की मुरादें ,
अब अपनी ही मुरादों को तकिए से दबा रखा है ।

मुझसे गलती जो हुई तो माफ़ मुझको सब ने किया ,
अब मेरी गलतियों को ही अपना मंसूबा बना रखा है ।

जो मेरे दिल को बेच दिया था मैंने पैसों मैं ,
अब मेरे दिल को ही मैंने पैसों सा बना रखा है ।

जो हर रह गुज़रती थी मेरे घर से होकर ,
अब मेरा घर ही मैंने किनारे पर बिठा रखा है ।

की मुझे आज भी कोई उस दौर से याद करता है ,
मेरा ये दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है ।

Sunday, March 1, 2009

यह सफर किस डगर


आज मैं आपका परिचय मेरे मित्र कवि से कराने जा रहा हूँ , श्री भारत भूषण तिवारी जी ,इनका जन्म नरसिंह पुरके गाडरवारा तहसील में १२ जनवरी १९७५ को हुआ , उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई वहाँ से की , आजकल भोपाल में नौकरी ढूँढ रहे हैं , ह्रदय कवि हैं अलग अलग मुद्दों पर अलग अलग समय पर इनकी कवितायेंअख़बारों में लगती रहती है ,पर कम्बक्थ इनसे पेट ही नही भरता ,अब नॉर्वेगियन लेखक क्नुत हमसून के नोवेलके नायक की तरह भी हो पाना मुश्किल है जो सोच लेता है के खाऊंगा तो लिख के ही , जीवन का सघर्ष काकठिन होता जा रहा है Hunger ओर उनका यह मानना यह भी है की जीवन में कुछ करते रहना जरूरी है यहाँ उनकी एककविता लिख रहा हूँ कैसे लगी बताएं , उन्हें ओर मुझे प्रोत्साहन मिलेगा


यह सफर किस डगर

मगर , क्यूँ चला

बेखबर मन की लहर

अमृत या ज़हर

पीता चला ,

कहीं फुहार अपनेपन की

बेगाना भी कुछ लगा

खींचती है डोर कोई

खींचता बे मन कदमो का काफिला ,

सच तो है उसकी सत्ता

बस मान लेगा एक दिन ,

चला 'भारत ' उसकी ओर खींचता चला