मेरा दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है ।
उस ज़माने मैं हमने लाख तारे तोडे हैं ,
अब इस ज़माने ने हमे तोड़ रखा है ।
वो क्या आदयें थीं अपनी इतराने की ,
अब अपनी आदाओं को हमने ही भुला रखा है ।
पूरी करी थीं ना जाने कितनो की मुरादें ,
अब अपनी ही मुरादों को तकिए से दबा रखा है ।
मुझसे गलती जो हुई तो माफ़ मुझको सब ने किया ,
अब मेरी गलतियों को ही अपना मंसूबा बना रखा है ।
जो मेरे दिल को बेच दिया था मैंने पैसों मैं ,
अब मेरे दिल को ही मैंने पैसों सा बना रखा है ।
जो हर रह गुज़रती थी मेरे घर से होकर ,
अब मेरा घर ही मैंने किनारे पर बिठा रखा है ।
की मुझे आज भी कोई उस दौर से याद करता है ,
मेरा ये दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है ।
उस ज़माने मैं हमने लाख तारे तोडे हैं ,
अब इस ज़माने ने हमे तोड़ रखा है ।
वो क्या आदयें थीं अपनी इतराने की ,
अब अपनी आदाओं को हमने ही भुला रखा है ।
पूरी करी थीं ना जाने कितनो की मुरादें ,
अब अपनी ही मुरादों को तकिए से दबा रखा है ।
मुझसे गलती जो हुई तो माफ़ मुझको सब ने किया ,
अब मेरी गलतियों को ही अपना मंसूबा बना रखा है ।
जो मेरे दिल को बेच दिया था मैंने पैसों मैं ,
अब मेरे दिल को ही मैंने पैसों सा बना रखा है ।
जो हर रह गुज़रती थी मेरे घर से होकर ,
अब मेरा घर ही मैंने किनारे पर बिठा रखा है ।
की मुझे आज भी कोई उस दौर से याद करता है ,
मेरा ये दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है ।
पूरी करी थीं ना जाने कितनो की मुरादें ,
ReplyDeleteअब अपनी ही मुरादों को तकिए से दबा रखा है ।
अच्छा लिखा है जी
पूरी करी थीं ना जाने कितनो की मुरादें ,
ReplyDeleteअब अपनी ही मुरादों को तकिए से दबा रखा है ।
bhut sundar.likhate rhe.
बहुत बढ़िया-जारी रहिये.
ReplyDeleteकी मुझे आज भी कोई उस दौर से याद करता है ,
ReplyDeleteमेरा ये दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है ।
vah bahut badhiya.
पूरी करी थीं ना जाने कितनो की मुरादें ,
ReplyDeleteअब अपनी ही मुरादों को तकिए से दबा रखा है ।
kya bat hai...bahut khoob.
yaade kabhi purani nahi hoti,
ReplyDeletena chahte huye bhi begani nahi hoti.
akksar hum kho jate hai in me.
kyoki inke bina meri kahani kuchh nahi hai!
.....................aapne bahut achchha likha hai apne bhavo ko!!