Sunday, July 13, 2008

चलो अब दूर चलें



चलो अब दूर चलें ,

होने अब हम बे नूर चलें ।
रंग रोगन को हम भी छोडेंगे ,


अलविदा कहने से पहले दूर चलें ।


आओ अंधेरे को हम भी ढूँढेंगे ,


चिराग हाथ मैं लिए बहुत दूर चलें ।


चिराग बुझ ना सके की अँधेरा मिल जाएगा ,


चलो ज़ख्म को बनाने नासूर चलें ।


किसी कोने मैं चल के बैठेंगे ,


किसी आहट से सहमे बैठेंगे ।


सबको भुलाने बदस्तूर चलें ,


चलो अब दूर बहुत दूर चलें ।


चलो के चल के ही मिट जायेंगे ,


कभी रुक ना जाना की थक जायेंगे ।


वापस ना तेरे घर ना मेरे घर जायेंगे ,


कोई ना दिखे इतने दूर चलें ।

चलो अब दूर चलें
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4 comments:

  1. बहुत शुभकामनाऐं...आप अपने सपने पूरे कर पायें.

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  2. बहुत अच्छे भावः लगे आप की कविता में....लिखते रहिये.
    पूना निश्चय ही अध्ययन की दृष्टि से रहने की दृष्टि से मुंबई से बेहतर है. आप का अनुभव क्यूँ ख़राब रहा नहीं कह सकता लेकिन कुछ दिन यहाँ रहेंगे तो ये शहर आप को अपना लेगा...इस शहर में सांस्कृतिक गतिविधियाँ अधिक हैं और भाग दौड़ कम.
    नीरज

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  3. achhe bhav ke sath likhi gai hai. jari rhe.

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  4. chalo bahut door chale.........wah sabhi line khoobsurat .

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आपके उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद्